Friday, January 17, 2020

चलोगे मेरे साथ....

सुनो...

मैं तुम्हारे साथ मनेर की दरगाह पर जाना चाहती हूं। यहां दरगाह और तालाब को अलग करती जो दीवार है न...उसपर तुम्हारे भरोसे चलना चाहती हूं।
पता है...परियों की किस्से कहानियां यहां सच होती हैं। परियों ने एक रात में दरगाह बनाया है और कोने में ये जो सुरंग देख रहे हो...ये अंदर ही अंदर कहां जाती है, आज तक किसी को पता नहीं चला। कितने लोगों ने इसकी थाह लगाने की कोशिश की, लेकिन अंदर गुम होते चले गए। बिल्कुल हमारे बीच के अहसास की तरह...किसी को अंदाजा नहीं कहां तक और कितनी है।
.....कितने ही जोड़े यहां दुनिया की भीड़ से नजरें चुराकर तन्हा वक्त की तलाश में आते हैं, लेकिन इसके बाद भी मुझे यहां की शांति पसंद है। एक अजीब सा सुकून है यहां।

अपने सयानेपन में मासूमियत समेटे मैं....दुनिया को समझने की जिद लिए बैठी थी। मन ही मन पीर बाबा को कह बैठी की एक दिन तुम्हें यहां जरूर लाऊंगी। चलोगे मेरे साथ वहां......
बोलो....हां तुम....
जानती हूं हम दोनों रेल की पटरियों की तरह हो चुके हैं, जो साथ तो हैं, लेकिन मिल नहीं सकते, लेकिन फिर भी एक बार....चलोगे मेरे साथ......उन्हीं पलों को जीने....

Sunday, February 7, 2016

विदेशी रंग में देसी ठाठ

सूरजकुंड जाने की बात से मैं बचपन की यादों में खो गई। मेला…जहां बड़े-बड़े झूले, छोटे-छोटे स्टॉल्स और रंग-बिरंगे कपड़ों में चहकते लोगों की भीड…हां वैसा ही नजारा था सूरजकुंड का, लेकिन अलग कलेवर में। दिल ने कहा….यहां पहले क्यों नहीं आई….
 झोपड़ी... हुक्का... पगड़ी... कच्ची पगडंडियों पर इठलाता गांव का परिवेश... कुछ ऐसी ही झलक अपने कृषि प्रधान देश की है, जो अब आधुनिकता की चाशनी में डूबकर निखर चुका है। सूरजकुंड मेला ऐसे ही नजारों को संजोकर आधुनिक भारत की झलक दिखा रहा है।



एक ओर हट और ठेठ ग्रामीण परिवेश का नजारा तो दूसरी ओर आधुनिकता की झलक दिखाता सेल्फी पॉइंट विकास की नई परिभाषा बता रहा था।
देसी लोगों के बीच विदेशी स्टॉल का नजारा अपने आप में अनोखा था। वही गांव की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियां, लेकिन वहां से गुजरता मॉडर्न यूथ। गांव के घर की झलक दिखाता मिट्टी का चूल्हा और उसमें से आती खुशबू ने भूख जगा दी थी।







नजारा कुछ ऐसा, जैसे गांव की छोटी सी दुकान में बैठे हो, लेकिन सामान की चमक आधुनिक मार्केट से जद्दोजहद करने को आतुर। पंजाब के स्टॉल पर सरसों के साग और मक्के की रोटी की सोंधी महक मस्ती में चूर हर किसी के कदम रोकने को आतुर थे तो पास ही राजस्थान का राजसी ठाठ सबको सेल्फी के लिए मोबाइल पर अंगुलियां फेरने को विवश कर रहा था।






इन सभी जगहों में से अगर कहीं सुकून मिला तो वह है चौपाल, जहां का नजारा अद्भुत था। वहां की भीड़ में खुद के लिए जगह बनाने में कुछ वक्त लग गया। तभी एक अनाउंसमेंट पर ध्यान गया, जिसमें हेलिकॉप्टर से पूरे मेले का नजारा दिखाने की बात थी, लेकिन इसका किराया जेब के हिसाब से थोड़ा ज्यादा था।







सूरजकुंड को जानने के लिए यहां बार-बार आने की जरूरत है। यहां की कुछ यादों को समेटकर खुद से दोबारा आने का वादा किया कि अगली बार हर इच्छा पूरी करूंगी….

Sunday, June 28, 2015

देश के लिए मोदी......

 
कभी-कभी दिल में ख्याल आता है.....तुम न होते तो क्या होता....
 


 

...ना ...ना मेरा इशारा किसी प्रेमी की तरफ कतई नहीं है, जो अपनी प्रेयसी के बिना जिंदगी की कल्पनी नहीं कर पा रहा है।
मेरा संदर्भ तो पीएम मोदी की तरफ है....जो किसी पारस की तरह लग रहे हैं, जो इस एंगल से किसी भी चीज को छूते कि वह लोगों के लिए खास बन जाता है।
जब उन्होंने स्वच्छता अभियान चलाया, पूरा देश उनके साथ हो गया। हालांकि इस बात से भी नकारा नहीं जा सकता है कि उनके आलोचकों ने खूब हल्ला मचाया, लेकिन कहीं ना कहीं वो भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि अच्छी पहल है। फिर क्या विरोधी, क्या सपोर्टर सभी मोदी गुण गाने लगे।
फिर उन्होंने मन की बात सुनाई, कुछ जोक्स क्रैक होने के साथ ही सभी मन की बात सुनाने लगे।

और अब योगा डे
ऐसा नहीं है कि योग की अहमियत लोगों को पहले पता नहीं थी, लेकिन अब तो यह गूगल पर सर्च होनेवाला सबसे ज्यादा टॉपिक बन गया। लोगों की नजर नहीं चाहते हुए भी ऐसी एक्टिविटीज पर रूक जाती हैं।
और तो और रही सही कसर IB वालों ने पूरी कर दी। बस ऐलान कर दिया....मोदी के योगा डे पर आतंकवादियों की नजर है।

सोचती हूं.....आतंकवादी भी सोचते होंगे, बैठे बैठे बोर होने से अच्छा है कुछ कर लिया जाए।
सूट से लेकर फॉरेन विजिट तक सभी बात में मोदी....मोदी....
एक इंग्लिश मूवी का डायलॉग अब तक याद है कि ....बदनाम है तो क्या हुआ, नाम तो है।

वाकई.....मौजूदा हालात यह है कि किसी राजनेता का हाजमा भी बिगड़ता है तो इसमें मोदी की साजिश ढूंढी जाती है।
मेरी मन की बात, पढ़कर आप ऐसा मत सोचिएगा की मैं मोदीभक्त हूं। जहां तक मुझे लगता है एक जर्नलिस्ट बनने के बाद विरोधी या सपोर्टर बनने की बात से परे हो जाते हैं।
कॉलेज के दिनों में किसी गणमाण्य अतिथि ने कहा था, तुम न्यूज कवर करने जाते हो, न्यूज बनने नहीं। इस बात का हमेशा ख्याल रखना। इसलिए कोशिश करती हूं कि किसी ऐसी आंधी की जद में नहीं आऊं।

तो अब पॉइंट पर आते हैं....
मोदी ने अपने वादे कितने पूरे किए, कितने नहीं इसका खासा विश्लेषण तो नहीं किया है, लेकिन हां उन्हें ये पता है कि लोगों के मन को बात कैसे सुनाते हैं।  
हालांकि ठगे महसूस करने के बाद भी लोगों को उम्मीद है कि शायद अभी अच्छे दिन आने बाकी हैं।

Tuesday, June 16, 2015

तो क्या बेपटरी हो गए मेट्रो के नियम...

मेट्रो, ऐसा नाम जिससे शायद सभी वाकिफ होंगे... छह या आठ डिब्बों की लग्जरी ट्रेन से जिंदगी कितनी आसान हो गई... इसका अहसास तो हर सुबह होता है। भीषण ट्रैफिक में जूझते वाहन, गाडि़यों के इंजन और हॉर्न का शोर, गर्मी और धूल से बेहाल शरीर... यह उस वक्त की दिनचर्या का अहम हिस्सा हुआ करता था। अॉफिस की थकावट तो इनके आगे जैसे रत्तीभर भी न टिकती हो। 
लाखों एनसीआर वासियों की तरह ही मैं भी इसी मेट्रो का अब अहम हिस्सा हूं। करीब एक साल से हर रोज की दिनचर्या में मेरे शामिल है मेट्रो का सफर। पहले वैशाली से प्रगति मैदान तक जाना होता था... लेकिन इसी बीच अॉफिस के पास एक स्टेशन आइटीओ के बनने की जानकारी हुई तो मन बहल उठा। 
हर दिन आइटीओ स्टेशन पर हो रहे निर्माण कार्य को देखते हुए अॉफिस जाना मेरी दिनचर्या में जुड़ गया। कुछ दिनों पहले लंबे समय से जिसका इंतजार था ओ पूरा हो गया। आइटीओ स्टेशन हमारी आगवानी के लिए तैयार था, लेकिन दौड़ती-भागती जिंदगी के बीच आइटीओ जाना भूल ही जाती थी। स्टेशन के सामने से गुजरने पर याद आता था... प्रगति मैदान क्यों उतरी... फालतू में इतना दूर चलना पड़ा। आखिरकार एक दिन घर से निकलने से पहले ही निश्चय किया आइटीओ से ही जाउंगी। 
आइटीओ तक उतरने की फिलिंग ऐसी थी, जिसे शब्दों में बयां कर पाना शायद मुश्किल है... मंडी हाउस पर आइटीओ के लिए मेट्रो का इंतजार कर रही थी, तभी अनाउंसमेंट हुआ, बदरपुर जाने वाले यात्री कृपया आइटीओ वाली मेट्रो पर न चढ़ें। वरना फाइन किया जाएगा...
 पहले तो माजरा समझ में नहीं आया....फिर जब मामले की तह तक गई तो पता चला। बेवजह भीड़ से इतने तंग आ गए हैं कि वे आइटीओ जाकर बदरपुर की मेट्रो पकड़ते हैं। भीड़ से मेट्रो प्रशासन भी इतना परेशान हुआ कि अपने ही नियमों को तोड़ने पर तुल गया। 
जहां तक मुझे पता है मेट्रो नियमों के अनुसार कोई भी यात्री एक मेट्रो स्टेशन पर 20 मिनट से ज्यादा रुकता है तो फाइन किया जा सकता है, लेकिन यह कहीं नियम नहीं है कि मेट्रो से एक स्टेशन पिछे जाकर आगे नहीं जा सकते।
अगर फिर भी मेट्रो प्रशासन के उस अनाउंसमेंट को मैं सही और जायजा मान भी लूं तो कौशांबी मेट्रो स्टेशन पर कई लोग ऐसे होते हैं, जो पहले वैशाली जाते हैं और फिर द्वारका सेक्टर 21 की तरफ। उनके लिए कभी ऐसा अनाउंसमेंट या कार्रवाई होते नहीं सुनी। जगह को लेकर नियमों में ऐसा भेदभाव कहां तक जायज है, समझ नहीं आता। 
हैरानी की बात यह है कि सोशल साइट्स और मीडिया में भी लोगों को हो रही इस समस्या का जिक्र तक नहीं है। जहां भी पढ़ा सिर्फ यही कि ऐसी अनाउंसमेंट हो रहा है, मेट्रो प्रशासन फलां....वजह से परेशान है, लेकिन क्या किसी को यह नहीं दिख रहा है कि इस भयंकर गर्मी में यात्री जो कुछ घंटे सुकून से बैठकर अपने गंतव्य तक जाना चाहते हैं, वो सुकून उनसे छीन लिया गया।