Friday, January 17, 2020

चलोगे मेरे साथ....

सुनो...

मैं तुम्हारे साथ मनेर की दरगाह पर जाना चाहती हूं। यहां दरगाह और तालाब को अलग करती जो दीवार है न...उसपर तुम्हारे भरोसे चलना चाहती हूं।
पता है...परियों की किस्से कहानियां यहां सच होती हैं। परियों ने एक रात में दरगाह बनाया है और कोने में ये जो सुरंग देख रहे हो...ये अंदर ही अंदर कहां जाती है, आज तक किसी को पता नहीं चला। कितने लोगों ने इसकी थाह लगाने की कोशिश की, लेकिन अंदर गुम होते चले गए। बिल्कुल हमारे बीच के अहसास की तरह...किसी को अंदाजा नहीं कहां तक और कितनी है।
.....कितने ही जोड़े यहां दुनिया की भीड़ से नजरें चुराकर तन्हा वक्त की तलाश में आते हैं, लेकिन इसके बाद भी मुझे यहां की शांति पसंद है। एक अजीब सा सुकून है यहां।

अपने सयानेपन में मासूमियत समेटे मैं....दुनिया को समझने की जिद लिए बैठी थी। मन ही मन पीर बाबा को कह बैठी की एक दिन तुम्हें यहां जरूर लाऊंगी। चलोगे मेरे साथ वहां......
बोलो....हां तुम....
जानती हूं हम दोनों रेल की पटरियों की तरह हो चुके हैं, जो साथ तो हैं, लेकिन मिल नहीं सकते, लेकिन फिर भी एक बार....चलोगे मेरे साथ......उन्हीं पलों को जीने....

No comments:

Post a Comment