कभी-कभी दिल में ख्याल आता है.....तुम न होते तो क्या होता....
और अब योगा डे
ऐसा
नहीं है कि योग की अहमियत लोगों को पहले पता नहीं थी, लेकिन अब तो यह गूगल
पर सर्च होनेवाला सबसे ज्यादा टॉपिक बन गया। लोगों की नजर नहीं चाहते हुए
भी ऐसी एक्टिविटीज पर रूक जाती हैं।
और तो और रही सही कसर IB वालों ने पूरी कर दी। बस ऐलान कर दिया....मोदी के योगा डे पर आतंकवादियों की नजर है।
सोचती हूं.....आतंकवादी भी सोचते होंगे, बैठे बैठे बोर होने से अच्छा है कुछ कर लिया जाए।
सोचती हूं.....आतंकवादी भी सोचते होंगे, बैठे बैठे बोर होने से अच्छा है कुछ कर लिया जाए।
सूट से लेकर फॉरेन विजिट तक सभी बात में मोदी....मोदी....
एक इंग्लिश मूवी का डायलॉग अब तक याद है कि ....बदनाम है तो क्या हुआ, नाम तो है।
वाकई.....मौजूदा हालात यह है कि किसी राजनेता का हाजमा भी बिगड़ता है तो इसमें मोदी की साजिश ढूंढी जाती है।
मेरी
मन की बात, पढ़कर आप ऐसा मत सोचिएगा की मैं मोदीभक्त हूं। जहां तक मुझे
लगता है एक जर्नलिस्ट बनने के बाद विरोधी या सपोर्टर बनने की बात से परे हो
जाते हैं।
तो अब पॉइंट पर आते हैं....
मोदी
ने अपने वादे कितने पूरे किए, कितने नहीं इसका खासा विश्लेषण तो नहीं किया
है, लेकिन हां उन्हें ये पता है कि लोगों के मन को बात कैसे सुनाते हैं।
हालांकि ठगे महसूस करने के बाद भी लोगों को उम्मीद है कि शायद अभी अच्छे दिन आने बाकी हैं।