Sunday, February 7, 2016

विदेशी रंग में देसी ठाठ

सूरजकुंड जाने की बात से मैं बचपन की यादों में खो गई। मेला…जहां बड़े-बड़े झूले, छोटे-छोटे स्टॉल्स और रंग-बिरंगे कपड़ों में चहकते लोगों की भीड…हां वैसा ही नजारा था सूरजकुंड का, लेकिन अलग कलेवर में। दिल ने कहा….यहां पहले क्यों नहीं आई….
 झोपड़ी... हुक्का... पगड़ी... कच्ची पगडंडियों पर इठलाता गांव का परिवेश... कुछ ऐसी ही झलक अपने कृषि प्रधान देश की है, जो अब आधुनिकता की चाशनी में डूबकर निखर चुका है। सूरजकुंड मेला ऐसे ही नजारों को संजोकर आधुनिक भारत की झलक दिखा रहा है।



एक ओर हट और ठेठ ग्रामीण परिवेश का नजारा तो दूसरी ओर आधुनिकता की झलक दिखाता सेल्फी पॉइंट विकास की नई परिभाषा बता रहा था।
देसी लोगों के बीच विदेशी स्टॉल का नजारा अपने आप में अनोखा था। वही गांव की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियां, लेकिन वहां से गुजरता मॉडर्न यूथ। गांव के घर की झलक दिखाता मिट्टी का चूल्हा और उसमें से आती खुशबू ने भूख जगा दी थी।







नजारा कुछ ऐसा, जैसे गांव की छोटी सी दुकान में बैठे हो, लेकिन सामान की चमक आधुनिक मार्केट से जद्दोजहद करने को आतुर। पंजाब के स्टॉल पर सरसों के साग और मक्के की रोटी की सोंधी महक मस्ती में चूर हर किसी के कदम रोकने को आतुर थे तो पास ही राजस्थान का राजसी ठाठ सबको सेल्फी के लिए मोबाइल पर अंगुलियां फेरने को विवश कर रहा था।






इन सभी जगहों में से अगर कहीं सुकून मिला तो वह है चौपाल, जहां का नजारा अद्भुत था। वहां की भीड़ में खुद के लिए जगह बनाने में कुछ वक्त लग गया। तभी एक अनाउंसमेंट पर ध्यान गया, जिसमें हेलिकॉप्टर से पूरे मेले का नजारा दिखाने की बात थी, लेकिन इसका किराया जेब के हिसाब से थोड़ा ज्यादा था।







सूरजकुंड को जानने के लिए यहां बार-बार आने की जरूरत है। यहां की कुछ यादों को समेटकर खुद से दोबारा आने का वादा किया कि अगली बार हर इच्छा पूरी करूंगी….